Monday, January 07, 2008

एक अकेला भगवान और इतना बड़ा मकान

-- एक अकेला भगवान और इतना बड़ा मकान --
"आलीशान मन्दिर बनाने के आजकल के लेटेश्ट फ़ैशन पर"

सूखे खेत की चुभन के बीच, सोचे खड़ा नंगा किसान,
एक अकेला भगवान और इतना बड़ा मकान ।

काले धन की माया से वत्स , हुए हैं ये भव्य कल्याण,
सादा जीवन की सीख देते, थके गाँधी व गीता पुराण।

भुला दी हमने वो बात, जब ठुकराय था प्रभू ने वो दान,
जिस पर लगा था शोषण-रक्त और बेइमानी के भद्दे निशान।

भुला दी गुरुओं की सीख, सिखाती कि सब हैं एक-समान,
गरीब सेवा ही सर्वोत्तम, गरीब ही में बसते भगवान

कलियुग के दौर में भैया, ’माया’ बन पड़ी बलवान,
भक्ति उसी भक्त की छाये, जो दे सबसे मोटा दान

एक से बढ़कर एक अमीर, हो रहे दानों के कीर्तीमान,
’अहम’ की तुष्टि ने हे प्रभू, बदली परिभाषा-ए-दान

असहाय-गरीब को दे दो न्याय, दो रोटी और एक मकान,
हर समर्थ सम्हाले एक गरीब, हो जाये यह धरा महान

वरना इक दिन जागेगा वो, गरीब के अन्दर का भगवान,
घुस जायेगा, छा जायेगा, हथिया लेगा तेरी ये प्रभू-दुकान

-- हिमांशु
नोट: सिर्फ़ पंक्ति "एक अकेला भगवान और इतना बड़ा मकान", मैंने मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली की किसी रचना में पढ़ी थी अत: साभार ले रहा हूँ।