-- २००७ --
व्यावसायिकताओं से भरी इस दुनिया में, भई गुरुओं की भीड़,
कोइ कराये झट प्रभू-दर्शन, कोइ दे मन-शान्ति गारण्टीड ।
मन-शान्ति गारण्टीड कह, मध्यम व उच्च वर्ग को ललचाये,
जेब हो खाली जिसकी, वो इन गुरुओं के पास फटकने ना पायें ।
कोइ कराये सत्संग अमीरों के, कोइ सिखाये फेफडे़ फुलाऊ प्राणायम,
पैसा है तो 'यू आर वेल्कम', तीसरी दुनिया को तो दूर से सलाम।
बातें करें महान भारतीय सभ्यता की ऐसी ऊँची-ऊँची,
भारत की दरिद्रता, गन्दगी देख, ईश्वर ने की गर्दन नीची।
मालदार आश्रम, मोटा 'रेज़ुमे', दुनिया-भर में अवाजाही,
पुरानी राबडी को नये ग्लास में देकर, लूटें खूब वाह-वाही ।
पश्चिम की हर बात माया-मिथ्या, सिखायें ये सबको भैया,
बातों पर ना लगे टेक्स, लेकिन गुरुजी सबसे बडा़ रुपैया।
सबसे बडा़ रुपैया जिनसे जुटाये ये सुविधायें आधुनिक जीवन की,
गुरुओं को सिखाये कौन कि ' गरीब में ही ईश्वर है ', पहले सेवा करो उनकी।
जबतक हैं गरीब असहाय है दुनिया में, सेवा हमें उनकी करनी है,
सुख शान्ति न गुरुऒं के आश्रमों, न अपने महलों मे, बात तय दिल में करनी है।
-- हिमांशु शर्मा
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4 comments:
अच्छा व्यंग गढ़ा...यह एक अत्यंत तीखी
प्रतिक्रिया है...संदेश भी है और मीठास भ॥
प्रिय बंधु,
आपका लेखन पुन: आज की सच्चाई बयान कर गया है । सन्यास हमारे यहाँ 'अपरिग्रह' का प्रतीक हुआ करता है । जितने सन्यासी हमारे यहाँ हैं, उतने शायद किसी भी समाज में नहीं होंगे । मेरी दृश्टि में ये हमारी ताकत है, कमज़ोरी नहीं । अपने देश की थोडी बहुत सुख-शांति में इनका भी योगदान है । आज तक हमारे ग्रामीण परिवेश में पुलिस नहीं जा पायी पर 'बाबाजी' मिल जायेंगे ।
किंतु जिनका काम समाज को निगलती 'बाजारुपन' की पॊध को ठीक करना था, वे ही बाजार के निम्नगामी सिध्दांतो को अपनाकर, मार्केट बनाने लगे, उस समाज का तो अब 'हमें' ही मालिक बनना होगा, और इन्हे पटरी पर लाना होगा ।
बहुत बढ़िया लिखा है हिमांशु भाई ।
इन अमूल्य बातों का नहीं है कोई मोल
कम शब्दों में ही आपने खोल दी इन गुरुओं की पोल
बधाई !!!
रीतेश गुप्ता
सुन्दर लिखा है... गुरु के बारे में और अधिक जानकारी के लिये मेरे ब्लाग http://dilkadarpan.blogspot.com पर मेरी ताजा रचना पढें...
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