-- मेरी प्यारी बिकाऊ भारतीय संस्कृति --
जब से भारत के बाहर मेरे कदम हुये, भारतीय संस्कृति के दर्शन हुए।
भारतीय संस्कृति लगी बिल्कुल नयी, या फिर हम थे उसके लिये नये।
रेस्तराओं में संस्कृति के नाम पर होती मौके-बे-मौके शाही दावतें में,
'देसी' लोग आत्महत्या करते भारतीय किसानों पर आश्चर्य जताते देखे गये।
विदेशी फ़ैशनेबल रहन-सहन और खान-पान की चमक दमक में,
आयुर्वेद, सादा जीवन को भूलकर, ' हैवी इण्डियन फ़ूड ' को नाक-भौं चिढ़ाते देखे गये।
रेडियो-टीवी पर अनगिनत रिमिक्स फ़ूहड़ गानों और विज्ञापनों के मेलों में,
संस्कृति के नाम पर बच्चे-बड़े-बूढे़ देखते-सुनते-सुनाते देखे गये।
टीवी के बोझिल सीरीयलों और घटिया हिन्दी फ़िल्मों की वादियों मे,
माँ-बाप अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति दिखाते देखे गये।
बॉलिवुड के सितारों के चलताऊ और बदरंग 'शो' की लाइनों में,
'सेकण्ड जेनेरेशन' अमरीकी भारतीय, 'इण्डिया इज़ कूल' के नारे कहते देखे गये।
पहले जो माँ-बाप गर्व से अपने बच्चों से करते थे अंग्रेज़ी में गुटरगूँ,
अब वो अपने अनमने बच्चों को समझाते-बुझाते, हिन्दी-कोचिंग में देखे गये।
जो भूखा-नंगा भारत, NGO वाले दिखाते रहे हर फ़ण्ड-रेज़र में,
उसकी बातें सिर्फ़ पार्टी-गौसिप में सब भारतीय करते देखे गये।
वीकेण्ड की दावतों में बातें हुई 'ग्रेट इण्डियन कल्चर' और वेदों के अथाह ज्ञान की,
जिम्मेदारी के नाम ये 'ग्रेट इण्डियन', नेताओं को गाली देकर पल्ला झाड़ते देखे गये।
-- हिमांशु
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6 comments:
वीकेण्ड की दावतों में बातें हुई 'ग्रेट इण्डियन कल्चर' और वेदों के अथाह ज्ञान की,
जिम्मेदारी के नाम ये 'ग्रेट इण्डियन', नेताओं को गाली देकर पल्ला झाड़ते देखे गये।
और हिमांशु भाई अपनी पीड़ा तबीयत से बयान करते देखे गये .....बहुत खूब
बड़ा ही सटीक चित्रण है । आज हमारी भारतीय संस्कृति का यही हाल है।
यह तो अच्छा संकेत है.
परिचर्चा पर आपके द्वारा एक पोस्ट से पता चला कि आप हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की पिछले कई वर्षों से विधिवत शिक्षा ले रहे हैं । मैं शास्त्रीय संगीत काफ़ी सुनता हूँ और थोडा बहुत समझता भी हूँ । क्या आप अपने चिट्ठे पर विभिन्न राग और थाट के बारे में जानकारी देंगे ।
आप चूँकि संगीत सीख रहे हैं इसलिये अच्छे से समझा सकते हैं । उदाहरण के तौर पर ये जानकारी हर जगह मिल जायेगी कि असावरी थाट के दरबारी राग में आरोह में सात और अवरोह में छ: सुर होते हैं, और अवरोह में धैवत वर्जित है ।
लेकिन एक आम सुनने वाले के लिये इसका क्या अर्थ है ? कैसे आप किसी बंदिश को सुनकर उसके राग और थाट के बारे में बता सकते हैं ।
इसी प्रकार की कुछ जानकारियाँ हम सबके के साथ बाँटे तो बडी कॄपा होगी ।
इस तरह से टिप्पणी करने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ ।
साभार,
नीरज
धन्यवाद रीतेश भाइ, ममता बहिन जी, संजय भाइ, नीरज भाइ।
नीरज भाइ: आपके द्वारा उठाया प्रश्न महत्वपूर्ण है। मेरी समझ के अनुसार मैं अभी यही कह सकता हूँ कि किसी कला का उद्देश्य है कि वह जन-साधारण को "अच्छी लगे"।
कोइ भी गीत, ग़ज़ल, भजन, बन्दिश, खयाल या अन्य सभी, एक कलाकार के ज्ञान, अभ्यास, लगन, प्रेरणा का एक उत्पाद है। इस उत्पाद मे बोल, सुर, राग, ताल, भाव, आदि सभी का मधुर संगम है।
आम सुनने वाले के लिये इनका महत्व व्यक्ति विशेष पर निर्भर है। उदाहरण के तौर पर, कई लोगों को हुसैन साहब की पैंटिंग पसन्द आ सकती है। कुछ यह भी जानना चाहते हैं कि वो उन्होंनें कैसे बनाई, कौनसे रंग लिये, लिये तो क्यों और फिर उन्हैं कैसे कैनवास पर उकेरा (तकनीकि, मोटी ब्रश, पतली ब्रश, चिमटा, रंग-मिश्रण, छाया आदि)। कुछ यह भी जानना चाहेंगे कि हुसैन साहब की प्रेरणा, भाव कहाँ से आते हैं।
जब हमें को कोइ बात पसन्द आती है तो फिर चाहे-अनचाहे हम उसके अन्दर तक उतरते जाते हैं।
यह अच्छी बात है कि आप संगीत की गहराई में जाते हैं। मैं कोशिश करूंगा कि इस बारे में कुछ उपयोगी लिख सकूँ।
मेरे संगीत गुरु के ब्लॉग भी देखते रहा करें http://manojgovindraj.blogspot.com/ । वो भी इस दिशा में लिखना प्रारम्भ करने वाले हैं।
बढिया बात की भाई हमेशा की तरह
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