-- कृषक आमिर मुम्बईवाला --
अब किसान की उपाधी लेकर अमिताभ क्या 'फ़ेमस' हुए, आमिर भाई भी चले कृषक बन्ने।
ए, क्या बोलता तू,
ए क्या मैं बोलूँ,
सुन,
सुना,
करता क्या खेती?
क्या करूँ, करके मैं खेती,
किसान बनेंगे, फ़ार्म-हाउस बनायेंगे, गरीबी-गरीबी की एक्टिंग (मज़ाक) करेंगे और क्या।
बात सच्ची-मुच्ची सोचने वाली है। क्या यह सच है? या फिर और अधिक संवेदन्शीलता का मस्का लगाकर "क्या यह गरीबों का मज़ाक नहीं है"?
हालाँकि इसे भी हम एक खबर की तरह या इसका मज़ाक उड़कर इसे भुला सकते हैं।
लेकिन क्या हमें यह विचारने की ताकत और समय है कि इतने धनवान होकर भी ये लोग इस तरह की मक्कारी और निकृष्ट हरकतें क्यूँ करते हैं?
या फिर। क्या हमें सिर्फ़ दूसरों की मक्कारी ही दिखाई देती है? क्या हम सब या हमारे आस्पास के लोग-लोगिनियाँ ऐसे नहीं हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि जो जितना पढा-लिखा है या धनवान है वो उतनी ही बड़ी मक्कारी करता है (शोध का विषय बन सकता है - (c) कॉपीराइटेड ) । क्या परिग्रह का खेल खेलते-खेलते हम इतने गिर चुके हैं कि मानवता या राष्ट्र-हित हमारे दिल-दिमाग़ में होली-दिवाली ही आयें?
एक तरफ़ तो किसान आत्म-हत्या कर रहे हैं (यह हकी़क़त है) और दूसरी तरफ़ हम लोग सम्पत्ति के नाम पर ज़मीन, घर, फ़ार्म-हाउस, एशो-आराम के संसाधन खरीदे जा रहे हैं जिससे हम अपनी 'लाइफ़' 'इन्जॉय' कर सकें। यदि हमारी परिग्रह की दौड़ में कोइ कानून, मानवता आडे़ आती है तो उसे कुचलने में झिझकते भी नहीं।
हाल ही मैंने स्वामी रामदेव के लन्दन प्रवास का साक्षात्कार देखा था। उनसे पूछा गया, "आपको यहाँ आकर कैसा लगा?" स्वामी जी ने कहा "यहाँ के दैनिक जीवन में विज्ञान का अधिक प्रयोग है। दूसरी मुख्य बात कि यहाँ सफ़ाई है और लोग क़ानून का आदर करते हैं, उससे डरते हैं चाहे वो गरीब, अमीर या प्रभावशाली हों। हमें भारत में भी ऐसा हे करना है। कुछ चीज़ें हम पश्चिम को सिखा सकते हैं तो कुछ उनसे सीख भी सकते हैं....."
अपवाद सभी जगह हैं। लेकिन हमें सोचना है कि क्या हम हमारे देश से सच्ची-मुच्ची का प्रेम करते हैं या सिर्फ़ हमारी देश-भक्ति नारा देने, क्रिकेट देखने या फिर गणतन्त्र/स्वतन्त्रता दिवस पर टीवी ऑन करने तक ही सीमित है।
अगर हम अमिताभ या आमिर को सुधार पाये तो अच्छा है, लेकिन अगर स्वयं को नहीं सुधार पाये तो ....
... सीटी बजने में देर नहीं। तो अब करना क्या है?
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2 comments:
अच्छी ख़बर ली है आपने
बहुत खूब लिखे हो भाईया ...विचारणीय विषय है
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