मेरे पिछले ६-७ साल के शेयर बाज़ार के कार्य-अनुभव पर आधारित।
मैंने आजतक ना कोइ शेयर प्रत्यक्ष रूप से खरीदा है और ना ही आगे खरीदने का कोइ इरादा है। हो सकता है कि मेरे कार्य-सेवा-समाप्ति ( रिटायरमेण्ट ) निवेश का प्रबन्धन करने वाली कम्पनी या मेरा बैंक अप्रत्यक्ष रूप से शेयर बाज़ार में निवेश करते हों। मेरा यह अनुभव है कि शेयर दललों और कम्पनियों के पास जो अन्दुरुनी जानकारी होती है और जिस तरह से वो अपनी हरकतों से बज़ार प्रभावित करते हैं, इन सबसे एक साधारण व्यक्ति का लड़ना बेमानी है।
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शेयर बाज़ार की लूट है लूट सके तो लूट,
पैसे लगे हैं पेड़ों पर, भर ले सूट और बूट।
भर ले सूट, खरीद शेयर और बन काग़ज़ी मालिक,
मनमर्जी करें डायरेक्टर, जब-तब पोते तेरे मुँह पर कालिख।
मुहँ पर कालिख और हो-हल्ले में, भुलायें अमानवीय हरकतें हर क्षण,
प्रकृतिक सम्पदाओं - मजदूरों का शोषण या हो सांस्कृतिक प्रदूषण।
प्रदूषण मन में लालच का, कोइ हमें यह गणित तो समझाये,
कौड़ी का ये शेयर, हज़ारों में कैसे बिक जाये।
खरीद सस्ता बेच महंगा का ये खेल खिलाये चक्कर,
जुआ नहीं तो और क्या, बने एक मालदार जब हज़ारों बने फक्कड़।
बनें हज़ारों फक्कड़, लुटाई जीवन भर की कमाई और हुए 'पैदल',
जो हुए मालदार शेयरों मे, मीडिया बनाये उन्हैं 'आइडल',
भारत से लेकर अमरीका तक, हुये शेयरों में खूब उछाल,
मालामाल हुये दलाल और चोर, करोड़ों हुये कंगाल।
दलाल रखें अन्दर की खबर और करें खूब धन्धा 'बैक-डोर'
हर नियम की काट रखें वो, मुनाफ़े के लिये बनें 'इन्साइडर'
वार्षिक वित्तीय परिणाम और घोटालों के चलें प्रपन्च दना-दन,
भगवान जाने कितने काले हैं इन घोटाले करने वालों के मन।
सोचो, समझो और छोडो़ शेयर की ये दुनिया झूठी,
लालच छोड़ कोशिश हो कि मिले किसी भूखे को रोटी।
-- हिमांशु शर्मा
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2 comments:
सही है!
खरीद सस्ता बेच महंगा का ये खेल खिलाये चक्कर,
जुआ नहीं तो और क्या, बने एक मालदार जब हज़ारों बने फक्कड़।
सोचो, समझो और छोडो़ शेयर की ये दुनिया झूठी,
लालच छोड़ कोशिश हो कि मिले किसी भूखे को रोटी।
वाह भाई क्या खूब कहा है ...धन्यवाद
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