http://news.bbc.co.uk/2/hi/south_asia/5157954.stm
अभी बीबीसी पर पढा कि महाराष्ट्र में कई और किसानों ने आत्महत्यायें की हैं और जून २००५ से अब तक ६०० किसान अपनी जान दे चुके हैं। ऐसा नहीं कि ये कोइ एक गांव की बात हो। भारत के कई राज्यों की यही हालत है।
यह सही है कि इस ब्लोग को पढने वाले अधिकतर लोगों को इस बात से कोइ सीधा ताल्लुक न हो, लेकिन क्या यह वही महाराष्ट्र है जहां के फ़िल्म स्टार एक फ़िल्म के करोडों रुपये लेते हैं, या फिर जहां भारत की औज्ञोगिक राजधानी मुम्बई है।
मैं यह नहीं कहता कि किसी को बिना मेहनत-मशक्कत किये रोटी मिलनी चहिये।
एक तरफ़ मेरे जैसे लोग हैं, जिन्हैं पढाई की सुविधा माता-पिता से मिली, हमारे पास इतनी बुद्धि थी कि हम पढ सके (हर किसी का डाक्टर-इन्जीनियर-वकील बनना भी सम्भव नहीं या मुश्किल है), या भाग्य हमारे साथ था, या कोइ भी कारण रहा हो, लेकिन हमारे पास हर सुविधा ज़रूरत से अधिक ही है। वरन मैं तो यही कहूंगा हम अपनी सम्पत्ति या सुविधाओं को और बढाने में ही लगे रहते है। अच्छी तन्ख्वाह-बोनस, बडा मकान, बडी कार, विलायत में छुट्टी, बच्चों के लिये दुनिया की सबसे बेहतर शिक्षा, इत्यादि।
और एक तरफ़ वो गरीब किसान हैं मेरे महान देश में, जो सिर्फ़ शारिरिक श्रम करते हैं। क्या उनके परिवारों दिन में दो बार रोटी मिलने का भी हक नहीं? क्या शारिरिक श्रम का महत्व इतना कम है?
हो सकता है ये मेरी बुद्धि-विलासता हो कि मैं इस बारे में सोच रहा हूं। या फ़िर 'सरवाइवल ऑफ़ थे फ़िटेस्ट' को चलने दो?
या फ़िर मेरे जैसे पढे-लिखे लोग उन जगहों की जिम्मेदारी लें जहा वो पैदा हुए, पढे-लिखे, जिन जगहों के सन्साधनों (शहर, गांव, विद्यालय, विश्व्विद्यालय, इत्यादि) का उन्होंने उपयोग किया और सुनिश्चित करें कि हम उस जगह के जीवन मे कैसा सकारात्मक बदलाव कर सकते हैं।
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-- हिमांशु शर्मा
सेवा परमो धर्म: | www.kalakari.com
Friday, July 07, 2006
Monday, July 03, 2006
नेता बेईमान !
अब हमने अपने एक नेता मित्र से तो बस छोटी सी बात कही थी कि ये नेता लोग इतने भ्रष्ट, निकम्मे, लिप-सर्विस देने वाले क्यों है। इतने महान संस्क्रिति वाले देश की बागडोर इनके हाथों मे डेमोक्रेटिकली सोंपी गयी है तो उसका मखौल क्यूं उडाते हैं ये नेता लोग।
अब भई, जब हर कोई, जी हां हर कोई (बच्चा, बडा, बूढा, मीडिया, नौकर, अफ़सर, सेठ, ठेले वाला, मोची, साइकिल पंक्चर ठीक करने वाला, हरिजन, शिक्षक, बाबू, आदि आदि) जब चाहे नेताओं को बुरा भला कहता रहता है तो मैने कौनसी गुस्ताखी कर दी?
सच कडवा होता है, लेकिन दुनिया की हर दवाई भी तो कडवी है। जाहिर है, बात हजम होना तो दूर, ऐसी जम गयी कि टाले न टले।
खैर सदियों से जब जब मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाला गया है तो डंक भी सहे गये हैं। अगले ही दिन, मेरे फ़नफ़नाये नेता मित्र अपने कुछ नता-नेतियों के साथ आ धमके मेरे घर, शास्त्रार्थ करने।
१. एक अधेड उम्र के नेता बोले "भाइ साहब, आप ये बताइये, हमें नेता बनाया किसने? अगर हम भी कुछ पढे-लिखे होते तो डाक्टर-ईन्जीनियर बने होते और अच्छी नौकरी करके बीवी-बच्चो के साथ सुनहरे, सपने बुन रहे होते। हम तो ये कहते हैं, नेता बनना कौन चाह्ता है? सबसे पहले लोग बनना चाह्ते हैं इन्जीनियर, डाक्टर, एम बी ए, सी ए, वकील... अगर कुछ भी ना बने तो टीचर-वीचर, बाबू-क्लर्क। और जो निखट्टू कुछ भी ना "बन" सके, वो आ जाते है राजनीति में और साथ ही लोग उनसे ही सबसे ज़्यादा अपेक्षा करते हैं समाज सेवा की।"
२. एक शान्त सी दिखने वाली नेतिन बोली: भैया, हम मानते हैं हम गवांर है, लेकिन आपके देश भी तो हमारे ही हाथों में है। क्यों ना आप जैसे समझदार, पढे-लिखे लोग हमारे कन्धों पर हाथ रखकर कहते "हम आपके साथ हैं"। हो सकता है हमें "मैनर्स" नहीं है, लेकिन आप तो सब समझते हैं, धीरज रखकर कर हमारे साथ काम कर सकते हैं। गान्धी जी ने भी कहा था कि "पाप से घृणा करो, पापी से नहीं"। आपकी पढाई क्या आपको धीरज धरके हमारे साथ देश की सेवा करना नहीं सिखाती?
मेरे भी मन में कई विचार उमड रहे थे। सोच रहा था कि मैं भी ऐसे-ऐसे उत्तर दे सकता हूं कि इन सबके मुन्ह बन्द कर दूं। लेकिन फ़िर क्या? इनके मुन्ह बन्द करने से सब ठीक हो जायेगा? फ़िर मुझे लगा शायद इनके मुन्ह खुलने दो आज।
३. एक जवान खून नेता ने दहाडते हुए कहा: भैया, ये जो सरकार में अफ़सर, बाबू, क्लर्क हैं उनमे से कई आपके ही रिश्तेदार हैं। ये कोइ संयोग नहीं कि एक व्यक्ति का सरकारी नौकर रिश्तेदार, अपने ही मित्र के रिश्तेदार से रिश्वत ले रहा है और उसकी ज़िन्दगी को नरक बनाने पर तुला है। अगर किसी के बेटे-भतीजे का ट्रन्स्फ़र कराना हो तो कौन आता है हमारे पास सिफ़ारिश लेकर? आप जैसे पढे-लिखे लोग जब आइ. ए. एस. , आइ. पी. एस. जैसी कन्ट्रोलिन्ग पोज़ीशन मे आकर क्यूं नही व्यवस्था बदलते? कोइ उनसे क्यू नही कहता कि .......
४. बात को काटते हुए एक सधे हुये नेता बोले: भाई हमारी यह मन्शा कतई नहीं है कि हम एक दूसरे की कमी निकालते रहें और चाय-समोसा खाकर चलते बनें।
५. एक समझार युवा नेता बोले: एक बिन्दु ये है कि अगर आप देखें तो आजकल राजनीति कितनी खतरनाक। कौन कब हमें जान से मार दे कोई पता नहीं। प्रधान्मत्री से लेकर सरपन्च तक मारे जाते रहे हैं। कोई है तैयार इतने खतरनाक कैरीयर में आने के लिये। लेकिन अगर सब मुन्ह मोड लेंगे राज्नीति से तो फिर इस देश को चलायेगा कौन? अगर हम सभी स्वकेन्द्रित हो कर कठिनाएयों से दूर भागते रहेंगे तो क्या सभी भारत छोड कर अमरीका या विकसित देश चले जायें, यही हल है सभी समस्याओं का?
मेरे मन ने भी सोचा। मैं इतनी ऊर्जा, समय नष्ट करता हू एक बुरे नेता के बारे में बात करने में, क्या कभी मैने उन अच्छी नेताओं के बारे में सोचा है कि मैं उनकी कैसे सहायता कर सकता हूं जिससे उनकी ज़िन्दगी आसान हो और उन जैसे नेता और बढें हमारे इस महान देश में।
अलार्म ज़ोर से घन-घना रहा था। आज ओफ़िस भी जल्दी जाना था क्योकि कई लोग छुट्टी पर जो हैं। क्या बताउं, मेरे ऑफ़िस मे भी इतनी "पॉकिटिक्स" है कि अगर टाइम पर ना पहुंचो तो टांग खीचने वाले बहुत हैं।
अब भई, जब हर कोई, जी हां हर कोई (बच्चा, बडा, बूढा, मीडिया, नौकर, अफ़सर, सेठ, ठेले वाला, मोची, साइकिल पंक्चर ठीक करने वाला, हरिजन, शिक्षक, बाबू, आदि आदि) जब चाहे नेताओं को बुरा भला कहता रहता है तो मैने कौनसी गुस्ताखी कर दी?
सच कडवा होता है, लेकिन दुनिया की हर दवाई भी तो कडवी है। जाहिर है, बात हजम होना तो दूर, ऐसी जम गयी कि टाले न टले।
खैर सदियों से जब जब मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाला गया है तो डंक भी सहे गये हैं। अगले ही दिन, मेरे फ़नफ़नाये नेता मित्र अपने कुछ नता-नेतियों के साथ आ धमके मेरे घर, शास्त्रार्थ करने।
१. एक अधेड उम्र के नेता बोले "भाइ साहब, आप ये बताइये, हमें नेता बनाया किसने? अगर हम भी कुछ पढे-लिखे होते तो डाक्टर-ईन्जीनियर बने होते और अच्छी नौकरी करके बीवी-बच्चो के साथ सुनहरे, सपने बुन रहे होते। हम तो ये कहते हैं, नेता बनना कौन चाह्ता है? सबसे पहले लोग बनना चाह्ते हैं इन्जीनियर, डाक्टर, एम बी ए, सी ए, वकील... अगर कुछ भी ना बने तो टीचर-वीचर, बाबू-क्लर्क। और जो निखट्टू कुछ भी ना "बन" सके, वो आ जाते है राजनीति में और साथ ही लोग उनसे ही सबसे ज़्यादा अपेक्षा करते हैं समाज सेवा की।"
२. एक शान्त सी दिखने वाली नेतिन बोली: भैया, हम मानते हैं हम गवांर है, लेकिन आपके देश भी तो हमारे ही हाथों में है। क्यों ना आप जैसे समझदार, पढे-लिखे लोग हमारे कन्धों पर हाथ रखकर कहते "हम आपके साथ हैं"। हो सकता है हमें "मैनर्स" नहीं है, लेकिन आप तो सब समझते हैं, धीरज रखकर कर हमारे साथ काम कर सकते हैं। गान्धी जी ने भी कहा था कि "पाप से घृणा करो, पापी से नहीं"। आपकी पढाई क्या आपको धीरज धरके हमारे साथ देश की सेवा करना नहीं सिखाती?
मेरे भी मन में कई विचार उमड रहे थे। सोच रहा था कि मैं भी ऐसे-ऐसे उत्तर दे सकता हूं कि इन सबके मुन्ह बन्द कर दूं। लेकिन फ़िर क्या? इनके मुन्ह बन्द करने से सब ठीक हो जायेगा? फ़िर मुझे लगा शायद इनके मुन्ह खुलने दो आज।
३. एक जवान खून नेता ने दहाडते हुए कहा: भैया, ये जो सरकार में अफ़सर, बाबू, क्लर्क हैं उनमे से कई आपके ही रिश्तेदार हैं। ये कोइ संयोग नहीं कि एक व्यक्ति का सरकारी नौकर रिश्तेदार, अपने ही मित्र के रिश्तेदार से रिश्वत ले रहा है और उसकी ज़िन्दगी को नरक बनाने पर तुला है। अगर किसी के बेटे-भतीजे का ट्रन्स्फ़र कराना हो तो कौन आता है हमारे पास सिफ़ारिश लेकर? आप जैसे पढे-लिखे लोग जब आइ. ए. एस. , आइ. पी. एस. जैसी कन्ट्रोलिन्ग पोज़ीशन मे आकर क्यूं नही व्यवस्था बदलते? कोइ उनसे क्यू नही कहता कि .......
४. बात को काटते हुए एक सधे हुये नेता बोले: भाई हमारी यह मन्शा कतई नहीं है कि हम एक दूसरे की कमी निकालते रहें और चाय-समोसा खाकर चलते बनें।
५. एक समझार युवा नेता बोले: एक बिन्दु ये है कि अगर आप देखें तो आजकल राजनीति कितनी खतरनाक। कौन कब हमें जान से मार दे कोई पता नहीं। प्रधान्मत्री से लेकर सरपन्च तक मारे जाते रहे हैं। कोई है तैयार इतने खतरनाक कैरीयर में आने के लिये। लेकिन अगर सब मुन्ह मोड लेंगे राज्नीति से तो फिर इस देश को चलायेगा कौन? अगर हम सभी स्वकेन्द्रित हो कर कठिनाएयों से दूर भागते रहेंगे तो क्या सभी भारत छोड कर अमरीका या विकसित देश चले जायें, यही हल है सभी समस्याओं का?
मेरे मन ने भी सोचा। मैं इतनी ऊर्जा, समय नष्ट करता हू एक बुरे नेता के बारे में बात करने में, क्या कभी मैने उन अच्छी नेताओं के बारे में सोचा है कि मैं उनकी कैसे सहायता कर सकता हूं जिससे उनकी ज़िन्दगी आसान हो और उन जैसे नेता और बढें हमारे इस महान देश में।
अलार्म ज़ोर से घन-घना रहा था। आज ओफ़िस भी जल्दी जाना था क्योकि कई लोग छुट्टी पर जो हैं। क्या बताउं, मेरे ऑफ़िस मे भी इतनी "पॉकिटिक्स" है कि अगर टाइम पर ना पहुंचो तो टांग खीचने वाले बहुत हैं।
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