-- दशहरा मेला : रावण ने दी पार्टी --
बुराई पर अच्छाई की जीत की देखो कैसी उलटी रीत,
रावण ने क्या दे डाली पार्टी, हम भूले पुरुषोत्तम की नीति।
भूले पुरुषोत्तम की नीति, हर साल हो रहा रावण ऊँचा,
दिल में कर गया घर, राम को निकाल बाहर फैंका।
ऐसा फैंका बाहर कि राम दूर तक नज़र ना आया,
राम-लीला में भी देखो, शानदार रावण सबको भाया।
ऐसा छाया रावण कि ' सिम्पल ' राम को गये सब भूल,
बच्चों का क्या दोष, उन्हैं तो रावण ही लगे ' कूल '।
रावण लगे है ' कूल ', सब चाहें उससे ठाठ-बाठ और शान,
सच्चाई का उत्सव ना होकर, मेला बन गया बनिये की दुकान।
बनिये की दुकान, बेचें महंगे कपड़े, पानी-पूरी और चाट,
व्यर्थ बहायें कागज़, प्लस्टिक और धरती दें कचरे से पाट।
धरती पर कचरा, मन और पेट में कचरा समा गया,
रावण कैसा भी हो, पर उसके पार्टी में मज़ा आ गया।
रावण कैसा भी हो, पर उसके पार्टी में मज़ा आ गया।
-- हिमांशु शर्मा
Tuesday, October 03, 2006
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