-- २००७ --
व्यावसायिकताओं से भरी इस दुनिया में, भई गुरुओं की भीड़,
कोइ कराये झट प्रभू-दर्शन, कोइ दे मन-शान्ति गारण्टीड ।
मन-शान्ति गारण्टीड कह, मध्यम व उच्च वर्ग को ललचाये,
जेब हो खाली जिसकी, वो इन गुरुओं के पास फटकने ना पायें ।
कोइ कराये सत्संग अमीरों के, कोइ सिखाये फेफडे़ फुलाऊ प्राणायम,
पैसा है तो 'यू आर वेल्कम', तीसरी दुनिया को तो दूर से सलाम।
बातें करें महान भारतीय सभ्यता की ऐसी ऊँची-ऊँची,
भारत की दरिद्रता, गन्दगी देख, ईश्वर ने की गर्दन नीची।
मालदार आश्रम, मोटा 'रेज़ुमे', दुनिया-भर में अवाजाही,
पुरानी राबडी को नये ग्लास में देकर, लूटें खूब वाह-वाही ।
पश्चिम की हर बात माया-मिथ्या, सिखायें ये सबको भैया,
बातों पर ना लगे टेक्स, लेकिन गुरुजी सबसे बडा़ रुपैया।
सबसे बडा़ रुपैया जिनसे जुटाये ये सुविधायें आधुनिक जीवन की,
गुरुओं को सिखाये कौन कि ' गरीब में ही ईश्वर है ', पहले सेवा करो उनकी।
जबतक हैं गरीब असहाय है दुनिया में, सेवा हमें उनकी करनी है,
सुख शान्ति न गुरुऒं के आश्रमों, न अपने महलों मे, बात तय दिल में करनी है।
-- हिमांशु शर्मा
Wednesday, January 17, 2007
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