-- मेरी प्यारी बिकाऊ भारतीय संस्कृति --
जब से भारत के बाहर मेरे कदम हुये, भारतीय संस्कृति के दर्शन हुए।
भारतीय संस्कृति लगी बिल्कुल नयी, या फिर हम थे उसके लिये नये।
रेस्तराओं में संस्कृति के नाम पर होती मौके-बे-मौके शाही दावतें में,
'देसी' लोग आत्महत्या करते भारतीय किसानों पर आश्चर्य जताते देखे गये।
विदेशी फ़ैशनेबल रहन-सहन और खान-पान की चमक दमक में,
आयुर्वेद, सादा जीवन को भूलकर, ' हैवी इण्डियन फ़ूड ' को नाक-भौं चिढ़ाते देखे गये।
रेडियो-टीवी पर अनगिनत रिमिक्स फ़ूहड़ गानों और विज्ञापनों के मेलों में,
संस्कृति के नाम पर बच्चे-बड़े-बूढे़ देखते-सुनते-सुनाते देखे गये।
टीवी के बोझिल सीरीयलों और घटिया हिन्दी फ़िल्मों की वादियों मे,
माँ-बाप अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति दिखाते देखे गये।
बॉलिवुड के सितारों के चलताऊ और बदरंग 'शो' की लाइनों में,
'सेकण्ड जेनेरेशन' अमरीकी भारतीय, 'इण्डिया इज़ कूल' के नारे कहते देखे गये।
पहले जो माँ-बाप गर्व से अपने बच्चों से करते थे अंग्रेज़ी में गुटरगूँ,
अब वो अपने अनमने बच्चों को समझाते-बुझाते, हिन्दी-कोचिंग में देखे गये।
जो भूखा-नंगा भारत, NGO वाले दिखाते रहे हर फ़ण्ड-रेज़र में,
उसकी बातें सिर्फ़ पार्टी-गौसिप में सब भारतीय करते देखे गये।
वीकेण्ड की दावतों में बातें हुई 'ग्रेट इण्डियन कल्चर' और वेदों के अथाह ज्ञान की,
जिम्मेदारी के नाम ये 'ग्रेट इण्डियन', नेताओं को गाली देकर पल्ला झाड़ते देखे गये।
-- हिमांशु
Tuesday, July 10, 2007
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