Wednesday, September 13, 2006

मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट

-- मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट --

इकोनोमी मेरी डेमोक्रेसी मेरी, सरकार को कर दूँ 'सेट',
मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट।

फल पिचका के जूस पिलाऊँ,
रोटी भुला के, डबल-रोटी मुँह लगाऊँ,
रसोई-घर का हो गया मटिया-मेट,
मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट।

विज्ञान मशीनीकरण से उत्पादन बढाऊँ,
लाख गरीब पर एक अमीर बनाऊँ,
धरती माँ की मार दूँ रेड,
मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट।

वैश्वीकरण औद्योगीकरण के कानून बनाऊँ,
सस्ते ऐश्वर्य घर-घर पहुँचाऊँ,
शोषण प्रदूषण से आखँ मूँदकर, तीसरी दुनिया का काटूँ पेट,
मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट।

टीवी, रेडियो, अखबार में छाऊँ,
विज्ञापन दिखा-दिखा ललचाऊँ,
इच्छाओं से भर दूँ मन, दिल और पेट,
मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट।

एक-दो कौडी दान दूँ, पर उससे सामान अपना खरीदवाऊँ,
नई पीढी के पढे-लिखे धासूँ, सबको अपनी शरण बुलाऊँ,
बोनस, वेकेशन कार थमाकर, कर दूँ उनकी मोटी जेब
मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट।

सेलेब्रेटी जब चाहूँ बनाकर, फ़ेशन स्टेटस-सिम्बल चलवाऊँ,
सुन लो तुम हो जोकर, अगर न रहे अप-टू-डेट,
मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट।

दिल दहला युद्ध विभीषिका से, देखो मैं एक आसूँ ना बहाऊँ,
लाखों मरते भूखे-प्यासे, देखो मैं तो बाज़ ना आऊँ,
पहनो 'नाइकी' पीयो 'सोडा' और भरो 'चिप्स' से पेट,
मैं हूँ कॉर्पोरेट ओ दुनिया मैं हूँ कॉर्पोरेट।

--हिमांशु शर्मा

4 comments:

Reetesh Gupta said...

वाह हिमांशु भाई क्या बात है ।
बहुत सच्ची और अच्छी कविता गढ़ी है ।

बधाई !!!

रीतेश गुप्ता

Pramendra Pratap Singh said...

आपने बहुत ही अच्‍छी रचना की है। समाज का बहुत ही स्‍पष्‍ट चेहरा प्रस्‍तुत किया है साधुवाद

Basera said...

हिमांशु जी, बहुत बढ़िज़ा लिखा है। यहां देखें

hemanshow said...

रीतेश भाई, महाशक्ति भाई और रजनीश भाई आपको मेरे विचार पसन्द आये, धन्यवाद। रजनीश भाई चिठ्ठाकार की दुनिया में मेरे शब्दों को शामिल करने का शुक्रिया।