Tuesday, August 01, 2006

गीता प्रयोगशाला

गीता प्रयोगशाला

गीता को मनोविज्ञान की सर्वोत्तम पुस्तक बताया गया है। पूरी दुनिया में, गीता के बारे में अनगिनत ज्ञानीजन व्याख्यान देते रहते हैं और बहुत लोग उसने लाभान्वित व प्रभावित भी होते हैं।
एक बार एक व्याख्यान में मैनें सुना था कि गीता को हम दो प्रकार से पढ सकते हैं। एक तो हम गीता पर शोध करें अर्थात संस्कृत, गीता की उत्पति, लेखन समय, विकास आदि का अध्ययन। दूसरा हम गीता में बताई गई बातों को पढें, समझें और उनको अपने जीवन में ढालने का प्रयास करें।
प्रत्यक्ष है कि जन साधारण गीता को दूसरे वाले प्रकार से ही पढना चहता है और उसे ऐसा ही करना भी चाहिये। अब प्रश्न ये उठता है कि गीता को पढने, समझने और जीवन मे ढाला कैसे जाये।
किसी भी विषय को सीखने के कई तरीके हो सकते हैं। एक तो ये कि हम उस विषय से सम्बंधित पुस्तकें लायें और स्वयं उनका अध्ययन करें। या फिर हम किसी शिक्षक की कक्षा में जायें और शिक्षक और अन्य सहपाठियों की सहायता से सीखें। लेकिन सिर्फ़ शिक्षक या ज्ञानीजन की बात सुनने और उसे पसन्द करने से काम नहीं चलेगा। एक और तरीका जिससे हम किसी भी ज्ञान को अच्छी तरह से सीख सकते हैं, और वो है हम प्रयोग करें और अपने प्रयोगों को अन्य साधकों से बांटें जिससे सभी लाभान्वित हों। आधुनिक विज्ञान को सीखने में प्रयोगों को बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है और विद्यालयों मे जीव-विज्ञान, भौतिकी, रसायन-विज्ञान आदि की प्रयोग्शालाओं में विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान को समझने में बहुत सहायता मिलती है। गीता से सम्बंधित हज़ारों पुस्तकें दुकानों या पुस्तकालयों में उपलब्ध और गीता पर व्याख्यान देने वाले ज्ञानीजन भी बहुत हैं। लेकिन गीता की प्रयोगशालायें बहुत कम हैं।

-- कैसी हो प्रयोगशाला --
हमें ऐसी प्रयोगशालाओं की स्थापना करनी होगी जहां जन-साधारण मिलजुल कर गीता पढें-सीखें और उसे अपने जीवन में ढालें। सबसे आवश्यक ये है कि सभी साधक अपने अनुभवों को बाटें और उन पर खुली चर्चा करें। ऐसी प्रयोगशाला कुछ पडोसी मिलकर कर भी सकते हैं। यह आवश्यक नहीं कि हम किसी नई संस्था की स्थापना करें। अगर कोई समूह पहले से ही गीता पठन-पाठन या कोइ अन्य सत्संग का कार्य करता है तो वह अपने कार्यक्रमों में मामूली फेर्बदल कर गीता प्रयोगों को प्रारम्भ कर सकता है। समय समय पर किसी ज्ञानीजन को व्याख्यान पर आमन्त्रित कर सकते हैं। इस बात पर बल दिया जाये कि चाहे एक श्लोक एक महीने तक पढा जाये, लेकिन उस चर्चा कर उसे जीवन मे ढाला जाये। इस तरह की प्रयोगशालायें न केवल बच्चे व बडों को गीता में छुपे अथाह ज्ञान से परिचित करवायेंगी और उनके जीवन में श्रेष्ठ संस्कार लाने में सहायक होंगी।

2 comments:

rachana said...

namste !! it will be amazing to have such "prayogshala"...

rachana said...

hello brother!! thanks a lot for your kind words on my blog...i have created my hindi blog too.hope to see u there..
www.rachanabajaj.wordpress.com