Tuesday, August 29, 2006

मिच्छामी दुखडम

नमस्ते!
मुझे जैन पर्व 'पर्यूषण' के पीछे छुपा सन्देश अति-सुन्दर लगा। तो मैंने सोचा कि इस बार मैं इसे मनाऊंगा।
मुझे लगता है कि दूसरों को क्षमा-दान देने से और दूसरों से क्षमा माँगने से हमारी बहुत सारी मानसिक समस्यायें हल हो सकती हैं। साथ ही हमें मानसिक स्वच्छता और शान्ति भी मिलती है।
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यदि मैंने जाने-अनजाने में कभी आपको अपने विचार, शब्द या कार्यों से अपको व्यथित किया है तो पर्यूषण के पावन पर्व पर मैं हृदय से आपसे क्षमा माँगता हूँ।
साथ ही:
मैं सभी जीव-अजीवों को क्षमा करता हूँ
मैं सभी जीव-अजीवों से क्षमा माँगता हूँ
मैं सभी जीव-अजीवों से मित्रता का व्यवहार करूँगा
मैं किसी से दुश्मनी का व्यवहार नहीं करूँगा
और मैं सभी से क्षमा-प्रार्थी हूँ।
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मुझे महसूस होता है कि मेरे मन में कई बार कई लोगों के प्रति कोइ बुरी बात (ईर्ष्या, घृणा, अहित भावना, क्रोध, द्वेष, आदि) उत्पन्न होती है। अधिकतर ऐसे विचार क्षणिक होते हैं लेकिन कभी-कभी ये बहुत दिनों तक मन में जगह बना लेते हैं। इस तरह के विचार मेरी क्रियात्मकता और सकारात्मक सोच को गलत तरह से प्रभावित करते हैं। दूसरी ओर मेरे जाने-अनजाने में किये गये अनुचित कार्य दूसरों को आहत करते है। भविष्य में मेरा प्रयास रहेगा कि में किसी को आहत न करूँ और अगर कर भी दिया तो क्षमा-याचना के लिये तत्पर रहूँ।

अत: मेरा विश्वास है कि पर्यूषण मेरी मानसिक व शारीरिक शक्ति को एकजुट करने और उसे समाज सेवा में लगाने में सहायक होगा।

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