----- घूस स्कूल -----
"नारा: ghoos school = ghoos is cool"
सुनो सुनो सुनो, मेरे प्यारे देश के नागरिकों सुनो,
पैदल - साइकिल छोडो, डबल-रोटी, जीन्स और कारों के सपने बुनो ।
इस स्कूल के खुलने पर, देश का सौभाग्य चढा नई सीढी,
घूस लेने के लेटेस्ट गुर, यहाँ सीखेगी हमारी नई पीढी।
अब बिना ट्रेनिंग किये, नहीं लेना घूस मेरे लाला,
हरे नोटों की गड्डी, ले सकोगे बिना किये मुहँ काला।
समेट सकोगे माल मेरे आका, जितनी तुम्हारी अंटी है,
बाल-भी ना होगा तेरा बाँका, ये लिखित गारण्टी है।
मरीजों की लाइन हो, या पानी-बिजली-फ़ोन का कनेक्शन,
बिना सुविधा शुल्क पत्ता ना हिले, आप राम हो या लक्षमण।
एडमीशन है चालू, ' जैक ' और डोनेशन दो लाख लेकर आना,
पहले दिन से आधुनिक शिक्षा का, नया पाठ तुम पढके जाना ।
अपने ज़मीर को मारें कैसे, आदि बातें सिखाई जायेंगी,
असहाय गरीब का खून चूसें कैसे, ये बातें आत्मा में बिठाई जायेंगी ।
घूस लेते हुए झिझकना मत, दिल को मत पिघलने देना,
ये सब विधि का विधान है, यह सत्य मन को समझने देना ।
यह सच है कि यह शरीर तो सिर्फ़ मिथ्या है,
तो इससे लेन-देन करने में, हर्ज़ ही क्या है।
इस स्कूल के टीचर हैं पढे-लिखे, और धुरन्धर हर क्षेत्र में,
ऊँचे खिलाडी हैं मोटी चमडी के, रोज़ धूल झोंकते ईश्वर के नेत्र मे।
किताबी ज्ञान होगा नियन्त्रित, पर प्रेक्टिकल पर ज़ोर होगा ज्यादा,
सभी लोग हैं आमन्त्रित, अमीर-गरीब, नर या मादा।
सभी हैं हमारे फ़्रेन्चाईज़, नेता, मन्त्री, अफ़सर, जज या बाबू,
जल्द मिलेगी खुशखबरी, जब सुविधा-शुल्क बिल होगा लोक-सभा में लागू।
आप बनो नेता, ऑफ़ीसर या बनो छोटे या मोटे बिजनेसमेन,
सबके जीवन में भैया, घूस ही तो है सबसे मेन।
दो बातों के बिना आजतक, ना चला किसी का काम,
फ़िर शर्म कैसी स्वीकारने में, चाहे घूस हो या 'काम'।
आप कुर्सी पर बैठे लेते हों या डर के अन्डर दी टेबल,
जल्द बढेगी घूस-कर्म की गरिमा, भागेगा डर और बनेगा ये नोबल।
वह दिन दूर नहीं जब हर बेटा धरती माँ का, होगा घूसखोर,
सीना तान के गर्व से बोल सकेगा, हाँ ! मैं हूँ चोर, मैं हूँ चोर।
-- हिमांशु शर्मा कुल समय ६ घण्टे (६ दिनों में १ घण्टा प्रतिदिन)
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5 comments:
वाह हिमांशु भाई,
क्या बात है!! यह आपकी अब तक की सबसे अच्छी पोस्टिंग है । व्यंग्य बडी कठिन कला है । आप इसे साध पा रहे हैं, बहुत खुशी की बात है । आगे बढाइये ।
अच्छा कटाक्ष है, मजा आया पढकर.
-समीर लाल
घूस को लोग कोसते भी है, और परोसते भी,
घूस को लेना और देना दोनों ही है, खता,
पर ये तो अंदाज़ की बात है,
कि इस खता पर लिखी क्या खूब कविता.
-रेणू आहूजा.
दीपक भाई, समीर भाई और रेणू बहन आपकी टिप्पणीओं और प्रोत्साहन का धन्यवाद। आप सभी को और अन्य लेखकों को पढकर और सीखकर, 'कुछ' करने की इच्छा का ही ये फल है कि लिख पाया हूँ।
हिमांशु जी, ये भी बढ़िया है। ये भी ले लिया गया है। यहां देखें
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